मुग़ल साम्राज्य का रोचक इतिहास



#बाबर (ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद)
बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 AD में फरगाना में हुआ था जोकि अब उज्बेकिस्तान में है |सम्राट बाबर भारत में मुग़ल साम्राज्य का  संस्थापक था | इसका नाम बाबर  पर्शियन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है सिंह ( शेर) | बाबर अपने पिता की तरफ से तैमुरलेन  का उत्तरधिकारी और अपने माता की तरफ से गंघिस खान के उत्तराधिकारी था |बाबर के जन्म के दौरान, पश्चिमी मध्य एशिया में रहने वाले  मंगोलों के पूर्वजों ने तुर्क और पर्शिया के लोगों के साथ अंतर्जातीय विवाह करना आरंभ कर दिया और उनके रहन - सहन को अपना लिया तथा पर्शिया से ज्यादा प्रभावित होने के कारण उन्होनें इस्लाम धर्म को अपना लिया |
बाबर ने राजगद्दी संभाली
1494 AD में बाबर के पिता  का अचानक देहांत हो गया और उस वक्त बाबर केवल 11 वर्ष का था | उसने अपने पिता की राजगद्दी संभाली | 1497 AD से बाबर ने प्रसिद्ध समरकन्द  में सिल्क रोड नखलिस्तान शहर  पर आक्रमण कर आधिपत्य जमा लिया परंतु कुछ ही वर्षों  के बाद उसने अपना नियंत्रण खो दिया क्यूंकि वह दूसरे स्थानों पर अपने आधिपत्य को मजबूत करने में व्यस्त था |
अफगानिस्तान में निर्वासन
बेघर राजकुमार मध्य एशिया में कुछ समर्थक पाने के लिए  तीन साल तक घूमता रहा ताकि वे इसे इसके पिता की राजगद्दी पाने में मदद करें | अंत में 1504 AD में उसने दक्षिण पूर्व की तरफ रुख किया और बर्फ़ से ढके हिन्द कुश  पर्वतों को  पार कर अफगानिस्तान पहुंचा | जब बाबर 21 वर्ष का हो गया उसने काबुल पर विजय प्राप्त की और काबुल पर अधिकार जमा कर  उसे अपना नया राज्य बनाया |
लोदी के तख़्ता पलट का न्यौता
1521 में दक्षिणी विस्तार के लिए बाबर के पास तख़्ता पलट का मौका आया  | दिल्ली सल्तनत के सुल्तान, इब्राहिम लोदी ने अपने प्रशंसकों कों सेना और सभा में स्थान देने तथा निर्धन वर्ग के लोगों पर शासन करने के कारण उसे प्रजा द्वारा नापसंद किया जाने लगा |इससे अफगान की प्रजा इब्राहिम लोदी से  इतनी परेशान हो गई थी कि उन्होनें दिल्ली सल्तनत में बाबर कों बुला कर इब्राहिम लोदी का तख़्ता पलट कर राजगद्दी लेने के लिए कहा |
पानीपत का प्रथम युद्ध
बाबर ने आखिरकार अप्रैल 1526 AD  में इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध आरंभ कर दिया और उसके सशस्त्र सेना ने सुल्तान इब्राहिम कों बाहर निकाल दिया | इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच में हुआ युद्ध, पानीपत का प्रथम युद्ध कहलाया और इस युद्ध ने दिल्ली सल्तनत का पतन सुनिश्चित किया |
राजपूत युद्ध
बाबर अपने पूर्वजों की तरह ही अपनी राजधानी आगरा में बनाने के लिए आतुर था | राजपूत जानते थे कि  मुगल सेनाएँ पानीपत के युद्ध के बाद कमजोर हो गईं होगी | इसलिए राजपुताना राजकुमारों ने लोदी की सेना से बड़ी सेना एकत्रित की और मेवाड़ के राणा सांगा के नेतृत्व में बाबर के विरुद्ध युद्ध करने चले गए | बाबर की सशस्त्र सेना राजपूतों के साथ युद्ध में कामयाब रही और मार्च 1527 AD में खनवा के युद्ध में उन पर काबू पाने में सफल रहे |
बाबर की मृत्यु
1530 AD में बाबर बीमार  हो गया | इसका बहनोई बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ (बाबर का ज्येष्ठ पुत्र ) कों मारकर  राजगद्दी कों हासिल करना चाहता था | हुमायूँ राजगद्दी  पर अपना अधिकार जताने के लिए आगरा के लिए तुरंत रवाना हो गया, परंतु वह गंभीर रूप से बीमार हो गया, पूर्वजों के मतानुसार, बाबर ने ईश्वर से उसकी ज़िंदगी के बदले हुमायूँ की जिंदगी बख्शने के लिए प्रार्थना की | 5 जनवरी 1531, को 47 वर्ष की उम्र में इसका देहांत हो गया और उस वक़्त हुमायूँ 22 वर्ष का था जब उसने साम्राज्य संभाला |
#भाग-5.2
#शाहबुद्दीन_मुहम्मद_शाहजहाँ
शाहजहाँ भारत का पाचवां मुगल सम्राट था, और वह एक श्रेस्ठ मुगल सम्राट के रूप मे जाना गया है। वह अपने विशाल साम्राज्य को बढ़ाने के लिए अत्यंत उत्सुक रहता था । शाहजहाँ जब बीमार पड़ गया तब उसे अपने वारिस औरंगजेब के द्वारा 1658 मे आगरा के किले मे कैद कर दिया गया था। गैर मुस्लिमो के प्रति उसका दृस्टिकोड़ कम उदार था, वह उसके दादा एवं पिता क्रमश: जहाँगीर एवं अकबर की तुलना मे, गैर-मुस्लिमो के लिये एक रूढ़िवादी मुस्लिम था ।
प्रारम्भिक जीवन:
शाहजहाँ राजकुमार शिहाब – उद- दीन मुहम्मद खुर्रम के रूप मे जाना गया। फारसी भाषा मे उसके नाम का अर्थ “हर्षित” है एवं उसके दादा “अकबर महान” ने उसे “खुर्रम” नाम दिया।
उसके पिता ने उससे प्रभावित होकर उसे बहुत ही कम उम्र मे “शाहजहाँ बहादुर” की उपाधि दे दी थी। उसने डेक्कन मे लोदी, मेवाड़ एवं कांगड़ा के विरुद्ध असाधारण सैन्य क्षमताओ का प्रदर्शन किया। इसके अतिरिक्त शाह जहाँ को “चमत्कारी निर्माता” की उपाधि दी गयी, उसके पास पुराने किलों को फिर से रूपरेखा प्रदान करने एवं नई संरचनाओ की रूपरेखा तैयार करने की उल्लेखनीय क्षमता थी।
उपलबधियाँ:
वह शानदार स्मारक ताजमहल, मोती मस्जिद (लाहौर – जो अब पाकिस्तान मे है), दिल्ली का जामा मस्जिद, आगरा किले का खंड, और वजीर खान मस्जिद दिल्ली का लाल किला का प्रवर्तक था।
डेक्कन के राज्यों पर जीत पाने के क्रम मे शाहजहाँ के निर्देश असाधारण साबित हुये। 1936 ईस्वी तक अहमदनगर को गोलकोंडा एवं बीजापुर के साथ जोड़ दिया गया था एवं उनकी शाखाओ को समाप्त करने के लिए मजबूर किया गया। मुगल सत्ता इसके अलावा उत्तर-पश्चिम मे फैला था। कांधार के प्रमुख फारसी गवर्नर अली मर्दन खान ने उस जगह को 1638 ईस्वी मे मुगलो को समर्पित कर दिया।  
विवाह:
1608 ईस्वी मे शाहजहां मात्र 15 साल की आयु का था जब उसकी सगाई 14 साल की अर्जुमंद बानो से हुयी। इसलिए राजकुमार को विवाह के लिए 5 साल का इन्तजार करना पड़ा।  
मुमताज़ महल
1612 ईस्वी मे शाहजहां जब मात्र 20 साल का था उसकी शादी आर्जूमंद बानो से कर दी गयी, जिसे मुमताज़ महल की उपाधि दी गयी।
शादी सुखमय / आनंददायक थी और शाहजहाँ आजीवन मुमताज़ महल के लिए समर्पित रहने लगा। मुमताज़ महल ने शाह जहां के 14 बच्चो को जन्म दिया जिनमे से मात्र सात वयस्कता तक जीवित रहे।
मुमताज़ महल जब 40 साल की आयु की थी, अपने चौदहवे बच्चे जिसका नाम गौहरा बेगम था, को जन्म देते समय प्रसवोत्तर रक्तस्राव की वजह से उसकी मृत्यु हो गयी, और उसका जन्म स्थान बुरहानपुर था।
उसके मृत शरीर को अस्थायी रूप से एक बगीचे मे दफन कर दिया गया था, जो शाहजहाँ के चाचा राजकुमार दनियाल के द्वारा ताप्ती नदी के किनारे बनाया गया था, जो एक जैनाबाद नाम से जाना जाने वाला बंद बगीचा था।
मुमताज़ महल की मृत्यु ने शाह जहाँ के व्यक्तित्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला और ताजमहल के निर्माण के लिए एक प्रेरक कारक सिद्ध हुआ, जहाँ पर बाद मे मुमताज़ महल के मृतक शरीर को पुनः दफन किया गया था। 
मृत्यु:
जब शाहजहाँ 1658 ईस्वी मे बीमार रहने लगा उस समय शाह जहाँ और मुमताज़ महल का बड़ा पुत्र दारा शिकोह आगे आया और अपने पिता के नाम से प्रतिशासक की ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया। उसके प्रतिशासन काल की संदेह की जानकारी मिलने के बाद दारा शिकोह के छोटे भाई शुजा जो बंगाल का वायसराय था एवं मुराद बक्स जो गुजरात का वायसराय था ने अपने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और एक विशिष्ट अंत लक्ष्य के साथ अपने पिता के धन पर दावा करने आगरा की ओर चल दिये।
तीसरा पुत्र औरंगजेब, अपने सभी भाईयों मे सबसे सक्षम, ने एक तैयार एवं कुशल सशस्त्र बल इकट्ठा किया और इसका मुख्य सेनापति बना। उसने आगरा के समीप दारा शिकोह के सशस्त्र बल का सामना किया और समुगढ़ की लड़ाई मे उन्हे पराजित कर दिया।
अपनी बीमारी से पूरी तरह से ठीक न होने के बावजूद, औरंगजेब ने शाह जहाँ को साम्राज्य प्रशासन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया और औरंगजेब ने उसे आगरा किले के कक्ष मे नजरबंद कर दिया। 
जनवरी 1666 ईस्वी मे शाह जहाँ गंभीर रूप से बीमार हुआ और बिस्तर तक ही सीमित रह गया; एवं वह 22 जनवरी तक लगातार कमजोर होता गया। शाहजहाँ के पादरी काज़ी कुर्बान और आगरा के सैयद मुहम्मद कनौजी आगरा के किले आए, उसके बाद वो उसके शरीर को पास के गलियारे मे ले गए, उसे धोया एवं ढक दिया और चन्दन की लकड़ी से बने एक ताबूत मे रख दिया।
मृत शरीर को आगरा मे ताजमहल ले जाया गया और उसके सबसे प्रिय पत्नी मुमताज़ महल की कब्र के बगल मे नदी के किनारे दफना दिया गया ।
पूरा नाम
अल आजाद अबुल मुजफ्फर शहाब-उद्दीन मोहम्मद खुर्रम
जन्म
5 जनवरी 1592 ईस्वी, लाहौर, पाकिस्तान में
शासन
1628-1658 ईस्वी इस समय को मुगल वास्तुकला का 'स्वर्ण युग'  के रूप में माना जाता था
पिता
जहांगीर
माता
ताज बीबी बिलक़िस मकानी
राजवंश
मुगल साम्राज्य
धर्म
इस्लाम
मृत्यु
22 जनवरी 1666 ईस्वी, आगरा किले मे, आगरा, मुगल साम्राज्य, भारत
दफ़न
ताजमहल
#भाग- 5.3
#महान_अकबर
जलाल-उद-दीन मोहम्मद अकबर  एक नाम, जो अपने आप में विरासत है, का जन्म राजा हुमायूँ और बेगम हमीदा बानो के हुआ, जब वे वर्ष 1542 में निर्वासन में रह रहे थे |अकबर की रुचि सभी युद्ध तकनीकों को सीखने में थी और वह पूरी तरह से पढ़ने  और लिखने में उदासीन था | वास्तव में वह बिलकुल भी पढ़ा लिखा नहीं था फिर भी वह सभी चीजों के बारे में जानने का इच्छुक था | बैरम खान के मार्गदर्शन में जलाल को  13 वर्ष की बहुत ही छोटी  आयु में शहँशाह अकबर के शीर्षक से नवाज़ा गया | बैरम खान सबसे वफ़ादार और योग्य सेना प्रमुख था जोकि शुरुआत में हुमायूँ के सेना में सेनापति था और उनकी मृत्यु के बाद, बैरम खान ने हेमू की बढ़ती हुई तानाशाही को समाप्त करने में अकबर की मदद की | बैरम की कमान में अकबर की सेना ने हेमू को 1556 AD में पानीपत के द्वितीय  युद्ध में पराजित  किया था |  
प्रशासन
अकबर को बहुत सक्षम सत्तारूढ़ तकनीक के लिए जाना जाता था | वह जिससे भी वह मिलता था उससे ज्ञान एकत्र करना चाहता था | उनका अपनी प्रजा से विनम्रता से बात करने का तरीका उनकी सबसे प्रमुख विशेषता थी |
अकबर अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध था  परंतु वह रणनीतिक तरीके से निरपेक्ष भी था | इतनी विशाल भूमि और विभिन्न धर्मों के देश पर शासन   उसने अपनी योग्यता के दम किया  |  
अकबर के शासन में धर्म
अकबर कट्टर मुसलमान नहीं था बल्कि उसे सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता के लिए जाना जाता था | इसी कारण वह लोगों के बीच प्रसिद्ध था |
अकबर ने कई धर्मों में विवाह किए जिसके द्वारा वह एकता और एकजुटता का संदेश देता था |
“सभी की एकता” में अपने विश्वास को मजबूत करने के लिए अकबर ने दीन-ए-इलाही के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसके द्वारा उसने “सभी धर्म समान हैं” के सिद्धांत को फैलाया |
कला व संस्कृति
एक समर्पित  शासक होने के साथ अकबर कला और संस्कृति का  महान संरक्षक था | वह कवियों व गायकों और कला से जुड़े लोगों के साथ का आनंद लिया करते था |
इसके दिल्ली में और उसके आसपास के किले  व महल, बेजोड़ कारीगरी की श्रेष्ठ कृतियाँ हैं |  उनमे से कुछ हैं फ़तेहपुर सीकरी, इलाहाबाद का किला, और आगरा का किला इत्यादि | अकबर संगीत व कविताओं का महान अनुरागी था, इसका दरबार महान कलाकारों, विद्वानों, कवियों, और गायकों इत्यादि का अनूठा मिश्रण था जोकि अकबर व उसकी सभा मे उल्लास बनाए रखते थे |
संस्कृति के लिए उसके इस प्यार ने उसके दरबार को नौ रत्नों से सुशोभित किया, जिन्होनें कला और ज्ञान के क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, वे निम्न हैं –
बीरबल (महेश दास ) दरबार का विदूषक
मियां तानसेन (तन्ना मिश्रा ) दरबार का गायक   
अबुल फजल (काल गणक ) जिसने अन –ए-अकबरी लिखी
फैज़ी (दरबार का कवि )
महाराजा मान सिंह ( सेना सलाहाकार )
फ़कीर अजीउद्दीन (सूफी गायक )
मिर्ज़ा अज़ीज़ कोको (गुजरात का सूबेदार )
टोडरमल ( वित्तीय सलाहाकर )
अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ( हिन्दी छन्दों के लेखक )
अकबर के जीवन में अन्य विशेषताएँ
कुछ ओर प्रमुख आदतें  जो लोगों को राहत देतीं थीं जिसके लिए अकबर को याद किया जाता था, वे हैं :
अकबर के शासन काल में जज़िया कर को समाप्त कर दिया गया |
इसने पढे लिखे हिन्दू पंडितों को महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर नियुक्त किया |
वह आम लोगों से बात करते थे व उनकी परेशानियों को दीवान-ए-आम में सुना करते थे |
वह हिन्दू, मुसलमान, और ईसाई विद्वानों से दीवान-ए-खास में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करते थे |
अकबर के शासन का अंत
1605 में 63 वर्ष की आयु में अकबर रक्ततिसार (पेचिश) से बुरी तरह ग्रस्त हो गए जो ठीक नहीं किया जा सका और इसने अकबर का जीवन ले लिया | अकबर को सम्मानपूर्वक तरीके से आगरा के किले में दफ़ना दिया गया |
#भाग- 5.4
#अबुल_मुजफ्फर_मुहि-उद-द्दीन #मुहम्मद_औरंगज़ेब
औरंगज़ेब का जन्म 14 अक्टूबर 1618 AD में दोहाद  में हुआ | वह शाहजहां और मुमताज़ महल की संतान था  | इसका  इंतकाल (मृत्यु ) 20 फरवरी 1707 AD में अहमदनगर में हुआ और इसे खुलदाबाद में दफनाया गया |
औरंगज़ेब आखिरी शक्तिशाली मुगल सम्राट और सम्राट शाहजहाँ व मुमताज़ महल की तीसरी संतान था  जिसने मुगल साम्राज्य को समृद्धि के स्तर तक पहुंचाया | उसकी रणनीतियाँ उसके कट्टरपन  के बारे मे बताती  हैं |
शुरुआती  जीवन
औरंगजेब एक ईमानदार और  समर्पित किशोर की तरह पला बढ़ा। इसने कट्टर मुस्लिम से विवाह किया | बहुत ही कम आयु में इसमे सशस्त्र बालों के लक्षण दिखाई दिये और इसके प्रबंधकीय कौशल से हर कोई आश्चर्यचकित था  जिसके परिणामस्वरूप इसका  अपने बड़े भाई दारा शिकोहा से विवाद हो गया जिसका स्वभाव तेज़ व अस्थिर था तथा जिसे औरंगज़ेब के पिता द्वारा सिंहासन का वारिस बना दिया गया था |
1646 AD से 1647 AD तक औरंगज़ेब ने अद्वितीय उत्कृष्टता के साथ सैनिकों को उज़्बेक और पर्शिया के खिलाफ आदेश दिया | 1657 AD में जब शाहजहां गिर गए, तब दोनों भाइयों के बीच का तनाव उन्हें सत्ता के युद्ध की तरफ ले गया |
परंतु शाहजहाँ के अप्रत्याशित स्वास्थ्य लाभ ने दोनों बच्चों के बीच के सत्ता के संघर्ष को समाप्त कर दिया | 1675 AD से 1659 AD तक सत्ता के युद्ध में औरंगज़ेब ने उसकी अंतरराष्ट्रीय सैन्य योग्यता, अधिक्रमण की अपनी असाधारण सैन्य शक्ति के बारे में परिचय दिया  जिसका परिणाम था कि दारा 1658 AD में समूरगढ़ में हार गया जिसके बाद उसने(औरंगज़ेब) अपने पिता (शाहजहाँ) को आगरा में अपने ही शाही निवास में बंदी बना लिया | 
भारत के सम्राट
1680 AD के आसपास औरंगज़ेब पूरी तरह से उत्तर पश्चिम को पर्शिया और मध्य एशियाई तुर्क और मराठा शासक शिवाजी से बचाने में व्यस्त हो गया  जिन्होनें दो बार सूरत के बन्दरगाह को लूटा था /
औरंगज़ेब ने विजय के लिए  अपने परदादा अकबर के नियम को अपनाया, दुश्मन की जासूसी करना, उससे मिलनसार संबंध बनाना, व शाही सेवा के द्वारा उनके जीवन व राज्य के रहस्यों के बारे मे पता लगाना | इस प्रकार , स्वतंत्र मराठा राज्य के नेता के रूप में, शिवाजी को पराजित कर, उन्हे आगरा, समझौते के लिए बुलाया गया (1666 AD) तथा उन्हें उच्च स्थान दिया गया, परंतु यह योजना 1680 AD में शिवाजी के दक्कन मे भाग जाने और वहाँ मृत्यु हो जाने से असफल हो गई |
1680 AD के आसपास के बाद औरंगज़ेब के शासन ने मन की स्थिति के परिवर्तन के साथ रणनीति मे परिवर्तन को अनुभव किया | इसने फिर से 1679 AD में गैर मुसलमानों पर सर्वाधिक सर्वेक्षण कर लगा दिया जिसे अकबर के शासन काल के दौरान हटा दिया गया था | बीजापुर के दक्कन राज्य मे अस्थिरता ने एक लंबे आर्थिक संकट को प्रोत्साहित किया जोकि मराठों से युद्ध के बाद विकसित हुआ  था |  शिवाजी के पुत्र सांभाजी को पकड़ लिया गया व 1689 AD में हत्या कर दी गई और जिसका परिणाम यह था कि  औरंगजेब का  साम्राज्य विभाजित हो  गया |
औरंगज़ेब ने दक्षिण में अनुपस्थिति के कारण उत्तरी प्रांत पर अपना नियंत्रण खो दिया जोकि पहले था | इसका परिणाम यह हुआ कि संगठन कमजोर हो गया | 1675 AD  में औरंगज़ेब ने सिख गुरु, तेग बहादुर को पकड़ा व हत्या कर दी जिन्होनें इस्लाम धर्म को अपनाने से मना कर दिया था, गुरु तेग बहादुर के आगे के गुरुओं ने औरंगजेब के शासन की नीतियों का खुल कर विरोध किया |
मृत्यु
1689 AD तक लगभग दक्षिण भारत के सभी हिस्से मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे और गोलकोंडा की उपलब्धि के बाद, औरंगज़ेब शायद सबसे अमीर और सबसे धनवान जीवित व्यक्ति था | औरंगज़ेब के विशाल राजसी युद्ध, मुगल साम्राज्यों  के क्षेत्रों पर अवरोध उत्त्प्न करती थी और यह उसके प्रतिद्वंधियों को उसके विरुद्ध उसके  महत्व को अलंकृत  करती थीं | औरंगजेब के युद्धों  को प्रांतीय नवाबों की कमी के कारण परेशानी हुई |
मुसलमानों का दृष्टिकोण औरंगज़ेब  से भिन्न था | ज़्यादातर मुस्लिम इतिहासकारों का मत था कि जब साम्राज्य पतन की कगार पर खड़ा था, उस समय  औरंगजेब सबसे शक्तिशाली अंतिम मुगल सम्राट था | महत्वपूर्ण विद्रोहों को सिखों व मराठों द्वारा सुलझा लिया गया जिन्होनें निर्जन स्थानों मे फैली  मुगल साम्राज्य की जड़ों  को उखाड़ फेंका था  |
औरंगजेब भी अपने पूर्वजों की तरह ही सोचता था कि  राजसी धनराशि को अपने साम्राज्य के नागरिकों के लिए उपयोग किया जाना चाहिए |प्रशासन के भारी काम में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुरान की  आयतों की नकल कर पैसा कमाने का समय निकाल लेता था | छोटे संगमरमर से निर्मित मस्जिद का निर्माण औरंगजेब द्वारा करवाया गया था, जिसे मोती मस्जिद के रूप में जाना गया, और यह दिल्ली के लाल किले  के प्रांगण में स्थित है | दूसरी तरफ, उसके लगातार युद्धों ने, खासकर मराठों के साथ, ने उसके राज्य को आर्थिक दिवालियापन की कगार पर  ला  दिया  था /
1706 AD के अपने अंतिम युद्ध में औरंगज़ेब मराठों के विरुद्ध था और इस युद्ध में उसे मुगल सशस्त्र बल में  नए उन्नत प्रमुखों  का सहयोग मिला जो थे सय्यद, हसन आली खान बरहा, सादत आली खान और आसफ जह-ई और दाऊद खान |
जीवन के अंतिम दिनों में औरंगज़ेब बीमार हो गया और वह चाहता था कि  उसके साम्राज्य के निवासियों को जानकारी होनी चाहिए कि वह अभी जीवित है | औरंगज़ेब का 20 फरवरी 1707 AD मे 88 वर्ष की आयु में अहमदनगर मे देहांत हो गया  |
कमजोर शासकों के अनुक्रम, उत्तराधिकार के लिए युद्ध और अमीर वर्ग के लोगों द्वारा शासन को उखाड़ फेंकने की साजिशें, मुगल शक्ति के कमजोर होने के अनिवार्य कारण बने, वास्तव  में यह सब  अंतिम मुगल सम्राट  औरंगजेब की मृत्यु के बाद हुआ  |
बहादुर शाह I, औरंगजेब के पुत्र को राजगद्दी मिल गई तथा वह साम्राज्य जिसने मुगल शासक औरंगजेब के शासन के दौरान समृद्धि को छुआ था, परंतु औरंगजेब के अधिक विस्तार क्षेत्र और बहादुर शाह के कमजोर सैन्य और आत्मबल  साम्राज्य को पतन के द्वार पर ले गई |
बहादुर शाह ने राजगद्दी को संभालने के बाद, मुगल साम्राज्य की समस्याओं को उजागर किया  | औरंगजेब की मृत्यु के कई वर्षों के बाद भी मुगल सम्राट की शक्तियाँ दिल्ली की सीमा के आसपास तक ही सीमित रह गईं थी |
#भाग- 5.5
#मुगल_काल_के_दौरान_सांस्कृतिक_विकास
बाबर, हुमायूँ, अकबर और जहांगीर जैसे मुगल शासक हमारे देश मे सांस्कृतिक विकास का प्रसार करने के लिए जाने जाते थे। इस क्षेत्र मे अधिक से अधिक कार्य मुगल शासन के दौरान किया गया था। मुगल शासक संस्कृति के शौकीन थे; इसलिए सभी शासक शिक्षा के प्रसार के समर्थन मे थे। मुगल परम्पराओ ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यो की महलों एवं किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।
मुगल सम्राटों के कार्य:
बाबर: वह एक महान विद्वान था उसने अपने साम्राज्य मे स्कूलों और कलेजों के निर्माण की ज़िम्मेदारी ली थी । इसे उद्यानों से बहुत प्यार था; इसलिए उसने आगरा और लाहौर के क्षेत्र मे कई उद्यानों का निर्माण करवाया। कश्मीर मे निशल बाग़, लाहौर मे शालीमार एवं पंजाब मे पिंजौर उद्यान बाबर के शासन काल के दौरान विकसित किए गए उद्यानों के कुछ उदाहरण थे और ये उद्यान वर्तमान मे अब भी उपस्थित है ।
हुमायूँ:  इसे सितारों और प्राकृतिक विशेषताओं से संबन्धित विषयों की किताबों से अत्यधिक प्रेम था; इसने दिल्ली के समीप कई मदरसों का भी निर्माण करवाया, ताकि लोग वहाँ जाये और सीखे । 
अकबर: इसने आगरा और फतेहपुर सीकरी मे उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या मे स्कूलों और कॉलेजो का निर्माण किया, वह चाहता था कि उसके साम्राज्य का प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सके। अकबर प्रथम मुगल शासक था जिसके शासन काल मे विशाल पैमाने पर निर्माण कार्य किया गया। उसके निर्माण कि श्रेणी मे आगरा का सबसे प्रसिद्ध किला और विशाल लाल किला जिसमे कई भव्य द्वार है, शामिल है।
उसके शासन काल के दौरान मुगल वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची थी और पूरे भवन मे संगमरमर लगाना और दीवारों को फूल की आकृति के अर्ध कीमती पत्थरो से सजाने की प्रथा प्रसिद्ध हो गयी। सजावट का यह तरीका पेट्राड्यूरा कहा जाता है, जो शाहजहाँ के सानिध्य मे अधिक लोकप्रिय हुआ, ताजमहल के निर्माण के समय उसने इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया, जिसे निर्माण कला के गहना के रूप मे माना गया।
जहाँगीर: वह तुर्की और फ़ारसी जैसी भाषाओं का महान शोधकर्ता था और वह अपनी स्मृतियों को व्यक्त करते हुये एक तूज़ुक-ए-जहांगीरी नाम की किताब भी लिख चुका था।
शाहजहाँ: मुगलो के द्वारा विकसित की गयी वास्तु की सभी विधियाँ ताजमहल के निर्माण के दौरान मनोहर तरीके से सामने आए। हुमायूँ के मकबरे पर एक विशालकाय संगमरमर का गुंबद था जिसे अकबर के शासन काल प्रारम्भ होने के शुरुआत मे दिल्ली मे बनवाया गया था और इसे ताज महल के पूर्वज के रूप मे माना जा सकता है। दोहरा गुंबद इस भवन की एक अन्य विशेषता थी।
औरंगजेब: औरंगजेब एक लालची प्रवृत्ति का शासक था, इसलिए उसके शासन काल मे अधिक भवनों का निर्माण नही हुआ। अट्ठारहवीं शताब्दी एवं उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मे हिन्दू और तुर्क ईरानी प्रवृत्ति और सजावटी प्रारूप के मिश्रण पर आधारित मुगल वास्तु परंपरा थी।
शिक्षा:
डॉक्टर श्रीवास्तव के अनुसार, “यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक बच्चा स्कूल या कॉलेज जाएगा, मुगल सरकार के पास शिक्षा का कोई विभाग नहीं था। मुगल शासनकाल के दौरान शिक्षा एक व्यक्तिगत मामले की तरह था, जहाँ लोगो ने अपने बच्चो को शिक्षित करने के लिए अपने खुद के प्रबंध कर रखे थे।”
इसके अतिरिक्त, हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों के लिए अलग - अलग स्कूल थे और बच्चो को स्कूल भेजने की उनकी भिन्न-भिन्न प्रथाएं थी।
हिन्दू शिक्षा:
हिन्दुओं के प्राथमिक विद्यालयों का रख-रखाव अनुदान या निधियों के द्वारा किया जाता था, जिसके लिए विद्यार्थियों को शुल्क नही देना पड़ता था।  
मुस्लिम शिक्षा:
मुस्लिम अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए मक्तब मे भेजा करते थे, जो मस्जिदों के पास हुआ करते थे एवं इस प्रकार के स्कूल प्रत्येक शहर एवं गाँव मे होते थे। प्राथमिक स्तर पर, प्रत्येक बच्चे को कुरान सीखना पड़ता था।
महिलाओं कि शिक्षा:
समृद्ध लोगो के द्वारा उनकी बेटियों को घर पर ही शिक्षा प्रदान करने के लिए निजी शिक्षकों कि व्यवस्था की जा रही थी, महिलाओं को प्राथमिक स्तर से ऊपर शिक्षा का कोई अधिकार नहीं था।
साहित्य:
फ़ारसी: अकबर फ़ारसी भाषा को राज्य भाषा के स्तर तक लाया, जिसने साहित्य के विकास का नेतृत्व किया।
संस्कृत: मुगलों के शासनकाल के दौरान, संस्कृत मे कार्य का निष्पादन मुगलों की अपेक्षा के स्तर तक, नही किया जा सका।
ललित कला:
भारत मे चित्रकला के विकास के लिए मुगल काल को स्वर्णिम दौर माना गया।
कला सिखाने के लिए भिन्न प्रकार के स्कूल इस प्रकार थे:
प्राचीन परंपरा के विद्यालय: भारत मे चित्रकला की प्राचीन शैली सल्तनत काल से पहले समृद्ध हुई थी । लेकिन आठवीं शताब्दी के बाद इस परंपरा का पतन होने लगा था लेकिन तेरहवीं शताब्दी मे ताड़ के पत्तों पर पांडुलिपियों एवं जैन ग्रन्थों के चित्रण से यह प्रतीत होता है कि परंपरा पूर्णतया समाप्त नही हुई थी।
मुगल चित्रकला: मुगल शासन काल के दौरान अकबर के द्वारा विकसित विद्यालय, उत्पादन के केंद्र की तरह थे।
यूरोपीय चित्रकला: अकबर के दरबार मे पुर्तगाली पादरी ने यूरोपियन चित्रकला का प्रारम्भ किया।
राजस्थान चित्रकला विद्यालय: इस प्रकार के चित्रकला मे वर्तमान विचारों एवं पश्चिमी भारत के पूर्व परम्पराओं एवं मुगल चित्रकला की भिन्न भिन्न शैली के साथ जैन चित्रकला विद्यालय का संयोजन शामिल है।
पहाड़ी चित्रकला विद्यालय: इस विद्यालय ने राजस्थान चित्रकला की शैली को बनाए रखा और इसके विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संगीत:
यह मुगल शासन काल के दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता का एकमात्र कड़ी सिद्ध हुआ। अकबर ने अपने दरबार मे ग्वालियर के तानसेन को संरक्षण दिया। तानसेन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे कई नयी धुन और रागो कि रचना का श्रेय दिया गया।
मुगलकाल के दौरान वास्तु विकास:
वास्तुकला के क्षेत्र मे, मुगल काल गौरवपूर्ण समय सिद्ध हुआ, जैसाकि इस समयान्तराल मे बहते हुये पानी के साथ कई औपचारिक उद्यानों का निर्माण किया गया।
इस प्रकार, कह सकते है कि मुगल परम्पराओं ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यों के महलों और किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।

Comments

  1. अति सुन्दर कार्य गुरु जी...... ये सरल भाषा और आसान ,जो इतिहास को समझना एक सरल है ,आपके भाषाओं में….......धन्यवाद् आपको।

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