भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (अंग्रेज़ी: Indian Space Research Organisation, संक्षेप में 'इसरो') भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक प्रान्त की राजधानी बंगलुरू में है। संस्थान में लगभग 17,000 कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।
स्‍थापना
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्‍थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्‍त गति प्राप्‍त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्‍मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट्ट', 'भास्‍कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्पल' जैसे प्रयोगात्‍मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्‍मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं। अंतरिक्ष यान के स्‍वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मज़बूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्‍व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्‍य देशों को भी उपलब्‍ध कराता है। इसरो की व्‍यावसायिक शाखा एंट्रिक्‍स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्‍व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ख़ास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्‍य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।
उद्देश्य
इसरो का उद्देश्य है, विभिन्न राष्ट्रीय कार्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उसके उपयोगों का विकास।
इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियाँ स्थापित की हैं-
संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम विज्ञानीय सेवाओं के लिए इन्सैट
और संसाधन मॉनीटरन तथा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस)।
इसरो ने इन्सैट और आईआरएस उपग्रहों को अपेक्षित कक्षा में स्थापित करने के लिए पीएसएलवी और जीएसएलवी, दो उपग्रह प्रमोचन यान विकसित किए हैं।
तदनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्रमुख उपग्रह प्रणालियाँ, यथा संचार सेवाओं के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इन्सैट) और प्राकृतिक संपदा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन (आईआरएस) का, साथ ही, आईआरएस प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और इन्सैट प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए भूस्थिर उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का सफलतापूर्वक प्रचालनीकरण किया है।
महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक परीक्षण
साईट
उपग्रह शैक्षणिक दूरदर्शन परीक्षण (साईट) एक मास कम्युनिकेशन या जन संचार परीक्षण था। इसके अंतर्गत देश के छह राज्यों के 2500 गांवों में अमरीकी उपग्रह ए टी एस-6 के इस्तेमाल से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन आदि विषयों पर ग्रामीण लोगों को टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से जागरुक बनाया गया। यह परीक्षण 1 जुलाई 1975 से 31 जुलाई 1976 तक चला।
स्टेप परीक्षण
1977-79 में उपग्रह दूरसंचार परीक्षण परियोजना के दौरान फ़्रांस और जर्मनी के उपग्रह सिम्फोनी का प्रयोग किया गया। इसके माध्यम से संचार के क्षेत्र के कई महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूरे किए गए। स्टेप परीक्षण ने घरेलू दूरसंचार के लिए एक भू स्थिर उपग्रह तंत्र के प्रचालन का मौक़ा दिया। इससे भू इन्फ्रास्ट्रक्चर के डिजाइन में मदद मिली।
एप्पल
इसका पूरा नाम एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। यह भारत में निर्मित पहला संचार उपग्रह था। यह प्रायोगिक संचार उपग्रह था, जिसमें केवल सी-बैंड ट्रांसपांडर थे। इसकी लॉन्चिंग 19 जून 1981 को यूरोपीय अंतरिक्ष संस्था के एरियन राकेट से की गई। यह एक बेलनाकार उपग्रह था। इसका वजन 350 किलोग्राम था। इस उपग्रह के इस्तेमाल से टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रेषण और रेडियो नेटवर्किंग जैसे संचार परीक्षण किए गए।
आर्यभट्ट उपग्रह
भारत का पहला उपग्रह था। इसका नामकरण भारत के प्राचीन गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर किया गया। इसे 19 अप्रॅल 1975 को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से लॉन्च किया गया। इस उपग्रह का निर्माण एक्स रे खगोलिकी वायुगतिकी और सौर भौतिकी पर परीक्षण करने के लिए किया गया था।
भास्कर उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भास्कर-1 और भास्कर-2 का निर्माण किया गया। ये देश के पहले निम्न भू कक्षा प्रेक्षण उपग्रह थे। दोनों उपग्रहों को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से छोड़ा गया। इन्हें क्रमश: 7 जून 1979 और 20 नवंबर 1981 को छोड़ा गया था। दोनों उपग्रहों ने समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान आदि से जुड़े कई आंकड़े इकट्ठे किए।
रोहिणी उपग्रह
यह एक उपग्रह शृंखला का नाम है। इसकी लॉन्चिंग इसरो ने ही की थी। रोहिणी प्रथम का इस्तेमाल लॉन्चिंग यान एसएलवी-3 के निष्पादन के मापन के लिए किया गया था। रोहिणी-2 और रोहिणी-3 उपग्रहों में लैंड मार्क संवेदक नीतभार लगाए गए थे।
इसरो के प्रमुख केंद्र
जोधपुर- पश्चिमी आरआरएसएससी
उदयपुर- सौर वेधशाला
भोपाल- इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
अहमदाबाद- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, विकास और शैक्षिक संचार यूनिट
बैंगलोर- अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो मुख्यालय, इनसेट कार्यक्रम कार्यालय, सिविल इंजीनियरिंग प्रभाग, अंतरिक्ष कारपोरेशन, इसरो उपग्रह केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इस्टैरक, दक्षिणी आरआरएसएससी, एनएनआरएमएस सचिवालय
हासन- इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
अलुवा- अमोनियम प्रक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
तिरुवनंतपुरम- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इसरो जड़त्वीय प्रणाली केंद्र
देहरादून- भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, उत्तरी आरआरएसएससी
नई दिल्ली- अंतरिक्ष विभाग शाखा सचिवालय, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली पृथ्वी स्टेशन
लखनऊ- इस्ट्रैक भू-केंद्र
खड़गपुर- पूर्वी आरआरएसएससी
नागपुर- मध्य आरआरएसएससी
हैदराबाद- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
तिरुपति- एनएमएसटी रडार सुविधा
श्रीहरिकोटा- सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार केंद्र
महेंद्रगिरि- द्रव नोदन जांच सुविधा केंद्र
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रणेता
डॉ. विक्रम साराभाई- 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्मे विक्रम इसरो के पहले चैयरमेन थे।
डॉ. सतीश धवन- वे 1972 में इसरो के चेयरमैन बने। लंबे कार्यकाल के दौरान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने लंबी छलांग लगाई।
प्रो. यू. आर. राव- अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो के भूतपूर्व चेयरमैन। आर्यभट्ट, एप्पल, इनसैट और आईआरएस तंत्र के विकास में अहम भूमिका।
डॉ. के. कस्तूरीरंगन- इसरो के भूतपूर्व चेयरमैन जिन्होंने 9 साल तक अंतरिक्ष कार्यक्रम को संभाला।
जी माधवन नायर- इसरो के वर्तमान में चेयरमैन। वे राकेट तंत्रों के क्षेत्र में मशहूर तकनीकी विशेषज्ञ हैं।
प्रमुख उपलब्‍धियाँ
वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्‍धि 'पीएसएलवीसी 6' का सफल प्रक्षेपण रही है।
5 मई, 2005 को 'पोलर उपग्रह प्रक्षेपण यान' (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों - 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्‍टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्‍क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्‍वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
22 दिसंबर, 2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्‍तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्‍य बड़ी उपलब्‍धि थी। इन्सेट-4ए डाररेक्‍ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
इसके अतिरिक्‍त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्‍थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्‍यवस्‍थाओं तथा अन्‍य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्‍न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।
इसरो ने सफलतापूर्वक लॉन्‍च किया साउथ एशिया सैटेलाइट
5 मई, 2017 शुक्रवार
करीब 450 करोड़ की लागत से बने उपग्रह (जीसैट-9) को 5 मई, 2017 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने लॉन्च किया। इससे उपग्रह से सार्क देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा लेकिन पाकिस्तान इससे बाहर है। इसका उपग्रह को चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दक्षिण एशियाई उपग्रह का सफल प्रक्षेपण ऐतिहासिक क्षण, इससे संबंधों के नए आयाम की शुरुआत होगी। जीसैट-9 को भारत की ओर से उसके दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के लिए उपहार माना जा रहा है। इस उपग्रह को इसरो का रॉकेट जीएसएलवी-एफ09 लेकर जाएगा। इसरो के अध्यक्ष ए.एस किरण कुमार ने गुरुवार को बताया था कि इससे आठ सार्क देशों में से सात भारत, श्रीलंका, भूटान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव परियोजना का हिस्सा हैं। पाकिस्तान ने यह कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने कहा, ' इस लॉन्च से हमारे आपसी रिश्ते मजबूत होंगे। इससे लोगों को आपस में जोड़ा जा सकेगा। लैंड, वॉटर और स्पेस में हमारा आपसी सहयोग बढ़ेगा।' भूटान के पीएम शेरिंग तोबगे ने कहा, 'दक्षिण एशिया उपग्रह लॉन्च ऐतिहासिक पल है। यह दुनिया के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि है। भारत को इसके लिए बधाई। आपसी सहयोग के लिए यह बड़ा कदम है। सैटलाइट बेस्ट संचार अब ज़रूरी हो गया है। हमारे क्षेत्र के लिए यह बेहतर होगा। यह भूटान जैसे देश के लिए काफ़ी अहम होगा।' मालदीव के राष्ट्रपति यमीन अब्दुल गयूम ने कहा, 'दक्षिण एशिया में यह 'सबका साथ सबका विकास' है। यह सैटलाइट इस क्षेत्र के लिए काफ़ी अहम होगा। यह पीएम मोदी का शानदार विजन है। इससे क्षेत्र के जनता के बीच सहयोग बढ़ेगा।' नेपाल के पीएम पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने इस शानदार लॉन्चिंग के लिए भारत को बधाई दी। उन्होंने कहा, 'यह क्षेत्र के विकास और टेलिमेडिसिन और आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर होगा। संचार सेवा के लिए भी यह उपग्रह बेहतरीन होगा।' श्रीलंका के राष्ट्रपति एम. सिरीसेना ने भी कहा, 'यह लॉन्च सभी सार्क देशों के लिए फायदेमंद होगा। शिक्षा, पर्यावरण, मौसम अनुमान के लिए लाभदायक होगा। यह क्षेत्र के लोगों को अच्छा जीवन देगा।'

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