कौन हैं रोहिंग्या और क्या है रखाइन का इतिहास? (Who is Rohingya and what is the history of the Rohingya?)

रोहिंग्या



रोहिंग्या म‍ुस्लिम प्रमुख रूप से म्यांमार (बर्मा) के अराकान (जिसे राखिन के नाम से भी जाना जाता है) प्रांत में बसने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिम लोग हैं।  


म्यांमार शासन से बचन-बचाने से लेकर दूसरे देश में शरण पाने की फिक्र हो या अस्तित्व बचाने से लेकर भविष्य का सवाल- रोहिंग्या मुसलमानों के सामने अंधेरा ही अंधेरा है।

रखाइन के बारे में

रखाइन म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बांग्लादेश की सीमा पर बसा एक प्रांत है, जो 36 हजार 762 वर्ग किलोमीटर में फैला है. सितवे इसकी राजधानी है.
म्यांमार सरकार की 2014 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक रखाइन की कुल आबादी करीब 21 लाख है, जिसमें से 20 लाख बौद्ध हैं. यहां करीब 29 हजार मुसलमान रहते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की करीब 10 लाख की आबादी को जनगणना में शामिल नहीं किया गया था.
रिपोर्ट में इस 10 लाख की आबादी को मूल रूप से इस्लाम धर्म को मानने वाला बताया गया है.

रोहिंग्या कौन हैं?

जनगणना में शामिल नहीं की गई आबादी को रोहिंग्या मुसलमान माना जाता है. इनके बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं.
सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है. हालांकि वे पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं.

हिंसा कब से?

रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है. इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं.
बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं. रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है.
लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं. इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था.
ताज़ा हिंसा क्यों?
25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों ने म्यामांर के उत्तर रखाइन में पुलिस पोस्ट पर हमला कर 12 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था.
इस हमले के बाद सेना ने अपना क्रूर अभियान चलाया और तब से ही म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है. आरोप है कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से खदेड़ने के मक़सद से उनके गांव जला दिए और नागरिकों पर हमले किए.
पिछले महीने शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक करीब 3,79,000 रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं.


1400 ईस्वी से अराकन में बसे हैं रोहिंग्या


बर्मा (अब म्यांमार) के अराकान प्रान्त में 1400 ईस्वी में ये मुसलमान आ बसे थे। नाक-नक्श से ये एशियाई हैं। भारतीय उपमहाद्वीप से आए हुए लगते हैं। अराकान प्रान्त म्यांमार के पश्चिम और बांग्लादेश के पूरब में स्थित है। 1430 ईस्वी में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारमीखला ने इन्हें शरण दिया था। उनके दरबार में ये नौकर-चाकर से लेकर बाहर मजदूरी का काम करते थे।

जब भारत में मुगल थे, तो अराकान में रोहिंग्या

कालान्तर में जब भारत में मुगलों का शासन कायम हुआ, तो इन रोहिंग्या मुसलमानों के दिन भी फिरे। इनकी भी सत्ता कायम हुई। इन्होंने अपने इलाके में मुगलों की तर्ज पर शासन शुरू किया। दरबार के अधिकारियों से लेकर पदवियों तक के नाम मुगलों की तर्ज पर रखे जाने लगे।

1785 ईस्वी में बौद्धों का अराकान पर अधिकार, हुए नरसंहार

जब हिन्दुस्तान में मुगल कमज़ोर हुए और अंग्रेजों की ताकत मजबूत होती चली गयी। उसी समय 1785 ईस्वी में बर्मा के बौद्धों का अराकान पर अधिकार हो गया। करीब 35 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान खदेड़ दिए गये या नरसंहार का शिकार हुए।


आग्ल-बर्मन युद्ध के बाद रोहिंग्या के फिर दिन फिरे

एक बार फिर रोहिंग्या मुसलमानों के दिन फिरे जब अंग्रेजों ने 1824 से 1826 के बीच चले युद्ध में बर्मा को पराजित किया और अराकान पर अपना आधिपत्य जमा लिया। अब अंग्रेजों ने रणनीति के तहत रोहिंग्या मुसलमानों और बंगाल के लोगों को अराकान में बसने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया। रखाईन इलाके में इस नयी बसावट से बौद्ध बेचैन हो गये। अंग्रेज यही चाहते थे। ‘फूट डालो शासन करो' की जो नीति वे भारत में चला रहे थे, उसी को वे बर्मा के अराकान में भी अमली जामा पहनाने लगे। रोहिंग्या मुसलमानों के लिए ये स्थिति अनुकूल थी। उन्होंने बौद्धों के खिलाफ अंग्रेजों का जमकर साथ दिया।


द्वितीय विश्वयुद्ध में बौद्ध-जापानियों से लड़े रोहिंग्या-अंग्रेज

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों को बर्मा से खदेड़ दिया गया। जापानी सैनिकों के सामने वे टिक नहीं सके। तब बौद्धों के हौंसले बुलन्द हो गये। उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों से पुराना हिसाब बराबर करना शुरू कर दिया। ये वो समय था जब सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तान की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ रहे थे और जापानी समर्थन से अपनी सेना को मजबूत कर रहे थे। रोहिंग्या मुसलमानों की सहानुभूति अंग्रेजों के साथ बनी रही। जापानी सैनिकों ने जासूसी का आरोप लगाकर रोहिंग्या मुसलमानों के साथ ज्यादती की। डर से करीब एक लाख मुसलमान एक बार फिर बंगाल भाग गये।


1962 में रोहिंग्या ने मांगा ‘स्वतंत्र राष्ट्र’

1962 में जब जनरल नेविन तख्ता पलटा, तब रोहिंग्या मुसलमानों ने भी इस अवसल को स्वतंत्र होने की लड़ाई के तौर पर लिया। मगर, नये सैनिक शासक ने रोहिंग्या मुसलमानों की आवाज़ बुरी तरह से कुचल दी। उन्हें ‘स्टेट लेस' घोषित कर दिया गया। चूकि आम बौद्धों की भावना रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ रही थी और जिसकी वजह अतीत में दोनों के बीच हुए संघर्ष का इतिहास रहा था, इसलिए सैनिक शासन ने इस भावना का फायदा उठाते हुए रोहिंग्या मुसलमानों पर जुल्म किए।


1982 में रोहिंग्या के नागरिक अधिकार भी छिन गये

रोहिंग्या मुसलमानों के लिए 1982 और भी ख़तरनाक वर्ष रहा, जब सैन्य शासन ने उनके नागरिक अधिकार तक छीन लिए। बुनियादी शिक्षा के अलावा हर किस्म की शिक्षा तक से उन्हें वंचित कर दिया गया। उसके बाद से इनकी स्थिति दयनीय होती चली गयी। नरसंहार के दौर चलते रहे, रोहिंग्या मुसलमानों की बस्तियां जलायी जाती रहीं। उन्हें उनकी ज़मीन से बेदखल किया जाता रहा। मस्जिद तोड़ दिए गये। सबसे बुरी बात ये रही है कि हिंसा का दौर थमने के बाद भी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए कभी सरकारी स्तर पर निर्माण कार्य नहीं कराया गया। एक बार अगर घर टूट गये, मस्जिद टूट गये तो उन्हें दोबारा बनाने के लिए सरकार कभी सामने नहीं आयी।


2016-17 में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति और दयनीय हुई

2016 में रोहिंग्या मुसलमानें और बौद्ध लोगों के बीच जो हिंसा छिड़ी, उसके बाद करीब डेढ़ लाख रोहिंग्या मुसलमान विस्थापित हुए। अब इस साल 2017 के 25 अगस्त के बाद से शुरू हुई हिंसा के ताज़ा दौर में भी लाखों लोगों को घर-बार छोड़ना पड़ा है। इस बार आरोप रोहिंग्या मुसलमानों पर है जिन्होंने संगठित होकर म्यांमार के सैनिकों पर हमला बोला। म्यांमार के सैनकों और लोगों में गुस्सा इतना ज्यादा है कि वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि लोकतंत्र समर्थक नेता के रूप में दुनिया में नाम कमा चुकी आंग सान सू की भी कह रही हैं कि रोहिंग्या म्यांमार के नागरिक नहीं हैं।


म्यांमार सरकार नहीं सुन रही है दुनिया की सलाह

संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इन्टरनेशनल और अमेरिका तक ने म्यांमार सरकार से रोहिंग्या मुसलमानों के साथ सही तरीके से पेश आने की अपील की है, मानवाधिकार की रक्षा की अपील की है लेकिन म्यांमार सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। नयी समस्या दुनिया भर के जेहादी तत्व हैं जो बिन मांगे समर्थन देकर रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या बढ़ा रहे हैं। वहीं भारत जैसे देशों की प्रतिष्ठा भी फंसी हुई है जो इस मामले में बहुत कुछ कर नहीं पा रहा है।


बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों के लिए शरणस्थली

फिलहाल बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बड़ी शरणस्थली बना हुआ है। वे वहां से भाग-भाग कर भारत में भी शरण ले रहे हैं। 6 सौ साल बाद भी रोहिंग्या मुसलमान अराकान प्रान्त में अपनी ज़मीन सुनिश्चित नहीं करा पाए हैं। अगर वे वहां से भी खदेड़े जा रहे हैं, दूसरे देश उन्हें स्वीकारने को तैयार नहीं, जहां कहीं भी पहुंचे हैं उन्हें शरणार्थी बनकर मुश्किल हालात में जीना पड़ रहा है। ऐसे में बेशकीमती सवाल यही है कि क्या ये धरती रोहिंग्या मुसलमानों की नहीं रह गयी है?

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