बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना है सरदार सरोवर बांध, ये हैं 15 बड़ी बातें + नर्मदा बचाओ आंदोलन




सरदार सरोवर बांध दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा नदी पर बनने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना सरदार सरोवर नर्मदा बांध का रविवार को अपने जन्मदिन के अवसर पर लोकार्पण किया।  लोकार्पण का कार्यक्रम केवड़िया गुजरात में है। भारत में बना यह अब तक का सबसे ऊंचा बांध है गुजरात के अस्तित्व में आने के कुछ समय बाद ही गुजरात की जीवनदायी कहे जाने वाले सरदार सरोवर नर्मदा योजना (नर्मदा बांध) की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 अप्रैल 1961 को रखी थी.लेकिन इसका निर्माण साल 1987 में शुरू हो पाया था।
इस योजना की कुल लागत के हिसाब से यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी योजना है. नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से सरदार सरोवर सबसे बड़ी बांध परियोजना(Dam Project) है. इस परियोजना का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है, लेकिन ये परियोजनाएं अपनी अनुमानित लागत से काफ़ी ऊपर जा चुकी हैं.
मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पड़ने वाली नर्मदा घाटी में 30 बड़े, 135 मझोले और 3000 छोटे बांध बनाने की योजना शुरू से ही हर मुद्दे पर विवाद में रही है.
सरदार सरोवर बांध से जुड़ी कुछ खास बातें:

1- मुंबई के इंजीनियर जमदेशजी एम वाच्छा ने सरदार सरोवर डैम का प्लान बनाया था। जिसकी आधारशिला 56 साल पहले राखी गई थी।

2- सरदार सरोवर बांध अमेरिका के ग्रांड कोली डैम के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है. (1933-1942) ग्रैंड कौली डैम अमेरिका के राज्य वाशिंगटन में कोलंबिया नदी पर एक ठोस गुरुत्व बांध है
3- इस बांध के 30 दरवाजे हैं और प्रत्येक दरवाजे का वजन 450 टन है. हर दरवाजे को बंद करने में करीब एक घंटे लगते हैं.
4- हाल ही में बांध की उंचाई को 138.68 मीटर तक बढ़ाई गई है. इस बांध की 4.73 मिलियन क्यूबिक पानी संचय करने की क्षमता है.
5- सरदार सरोवर बांध गुजरात के केवाड़िया क्षेत्र में स्थित है. सिंचाई और पानी की आपूर्ति के मामले में राजस्थान को भी कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है.
6- बांध से 6 हज़ार मेगावाट बिजली पैदा होगी जो कि गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में वितरित होगी.
7- भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 April1961 में इस परियोजना की शुरुआत की थी. करीब पांच दशकों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 17 sept 2017 इसका लोकार्पण किया
8- नर्मदा बचाव आंदोलन की अगुवाई करने वाली मेधा पाटकर ने इस मामले को लेकर सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में घसीटा और 1996 में कोर्ट ने निर्माण पर रोक लगा दी.
9- अक्टूबर 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ने बांध के पुनर्ग्रहण की अनुमति दी.

10- ये बांध अब तक 16,000 करोड़ की कमाई कर चुका है जो इसके स्ट्रक्चर पर हुए खर्च से तकरीबन दोगुना है।
11- बांध बनने के बाद दो साल तक यूपीए सरकार ने इस पर फाटक लगाने की अनुमति नहीं दी थी। पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के 17वें दिन ही इस पर फाटक लगाने की अनुमति दे दी थी।
12- इस परियोजना से 18 लाख हेक्टेयर जमीन को लाभ होगा नर्मदा के पानी से नहरों के जरिए 9,000 गांवों में सिंचाई की जा सकेगी।
13- बांध बनाने में 86.20 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा है इससे पृथ्वी से चंद्रमा तक सड़क बनाई जा सकती थी।
14- इस बांध को लेकर आंदोलन भी किए गए इन आंदोलनकारियों की लंबे समय से मांग है कि बांध से जुड़े दरवाजों को खुला रखा जाए ताकि पानी का स्तर कम रहे। इससे गांव में बाढ़ के खतरे की आशंका कम रहेगी।

15- जुलाई माह से बांध के दरवाजे बंद होने के बाद मध्य प्रदेश के बारवानी और धार इलाकों में जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इस मामले पर नर्मदा बचाओ आंदोलनकारियों ने दावा किया है कि अगर इसका जलस्तर अपनी क्षमता से अधिक बढ़ गया तो मध्य प्रदेश के 192 गावों के 40 हजार परिवार प्रभावित होंगे। तो वहीं सरकार की अगर मानें तो 18,386 परिवार ही प्रभावित होंगे।
1000 वॉट की 620 एलईडी बल्बों से सजाया गया डैम
- बांध पर गुलाबी, सफेद और लाल रंग की 620 एलईडी बल्ब लगाए गए हैं। इनमें से 120 बल्ब बांध के 30 गेट पर लगे हैं। इनसे पैदा होने वाली रोशनी से ओवरफ्लो का आभास होता है।
एमपी को मिलेगी 57% बिजली, राजस्थान को सिर्फ पानी
- डैम का सबसे अधिक लाभ गुजरात को मिलेगा। इससे यहां के 15 जिलों के 3137 गांव के 18.45 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।
- बिजली का सबसे अधिक 57% हिस्सा मध्य प्रदेश को मिलेगा। महाराष्ट्र को 27% और गुजरात को 16% बिजली मिलेगी। राजस्थान को सिर्फ पानी मिलेगा।

दुनिया का सबसे लंबा बांध
हीराकुंड परियोजना भारत की नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना के अंतर्गत उड़ीसा राज्य में संबलपुर जिले से 15 किमी दूर महानदी पर हीराकुंड बाँध बनाया गया है। इस बांध का निर्माण सन 1948 में शुरू हुआ था और यह 1953 में बनकर तैयार हुआ। साल 1957 में यह बांध पूरी तरह से काम करने लगा।

नर्मदा आंदोलन- कब क्या हुआ?

जुलाई 1993 - टाटा समाज विज्ञान संस्थान ने सात वर्षों के अध्ययन के बाद नर्मदा घाटी में बनने वाले सबसे बड़े सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के बारे में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि पुनर्वास एक गंभीर समस्या रही है। इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया कि बांध निर्माण का काम रोक दिया जाए और इस पर नए सिरे से विचार किया जाए।
अगस्त 1993- परियोजना के आकलन के लिए भारत सरकार ने योजना आयोग के सिंचाई मामलों के सलाहकार के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया।
दिसम्बर 1993- केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है।
जनवरी 1994- भारी विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री ने परियोजना का काम रोकने की घोषणा की।
मार्च 1994- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास के साधन नहीं हैं।
अप्रैल 1994- विश्व बैंक ने अपनी परियोजनाओं की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि सरदार सरोवर परियोजना में पुनर्वास का काम ठीक से नहीं हो रहा है।
जुलाई 1994- केंद्र सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी लेकिन अदालत के आदेश के कारण इसे जारी नहीं किया जा सका। इसी महीने में कई पुनर्वास केंद्रों में प्रदूषित पानी पीने से दस लोगों की मौत हुई।
नवंबर-दिसम्बर 1994- बांध बनाने के काम दोबारा शुरू करने के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भोपाल में धरना देना शुरू किया।
दिसम्बर 1994- मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के सदस्यों की एक समिति बनाई जिसने पुनर्वास के काम का जायज़ा लेने के बाद कहा कि भारी गड़बड़ियां हुई हैं।
जनवरी 1995- सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पांच सदस्यों वाली सरकारी समिति की रिपोर्ट को जारी किया जाए। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बांध की उपयुक्त ऊंचाई तय करने के लिए अध्ययन के आदेश दिए।
मार्च 1995- विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सरदार सरोवर परियोजना गंभीर समस्याओं में घिरी है।
जून 1995- गुजरात सरकार ने एक नर्मदा नदी पर एक नई विशाल परियोजना-कल्पसर शुरू करने की घोषणा की।
नवंबर 1995- सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी।
1996- उचित पुनर्वास और ज़मीन देने की मांग को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में अलग-अलग बांध स्थलों पर धरना और प्रदर्शन जारी रहा।
अप्रैल 1997- महेश्वर के विस्थापितों ने मंडलेश्वर में एक जुलूस निकाला जिसमें ढाई हज़ार लोग शामिल हुए। इन लोगों ने सरकार और बांध बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स की पुनर्वास योजनाओं पर सवाल उठाए।
अक्टूबर 1997- बांध बनाने वालों ने अपना काम तेज़ किया जबकि विरोध जारी रहा।
जनवरी 1998- सरकार ने महेश्वर और उससे जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा की घोषणा की और काम रोका गया।
अप्रैल 1998- दोबारा बांध का काम शुरू हुआ, स्थानीय लोगों ने निषेधाज्ञा को तोड़कर बांधस्थल पर प्रदर्शन किया, पुलिस ने लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े।
मई-जुलाई 1998- लोगों ने जगह-जगह पर नाकाबंदी करके निर्माण सामग्री को बांधस्थल तक पहुंचने से रोका।
नवंबर 1998- बाबा आमटे के नेतृत्व में एक विशाल जनसभा हुई और अप्रैल 1999 तक ये सिलसिला जारी रहा।
दिसम्बर 1999- दिल्ली में एक विशाल सभा हुई जिसमें नर्मदा घाटी के हज़ारों विस्थापितों ने हिस्सा लिया।
मार्च 2000- बहुराष्ट्रीय ऊर्जा कंपनी ऑगडेन एनर्जी ने महेश्वर बांध में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
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